Poems on tree in Hindi | पर कविता हिन्दी 2024

नमस्कार दोसतो आज हम देखेनगे पेड पर कूच मनोरंजक कविताये[Poems on tree in Hindi] जो मुझे पाता हे की आपको जरूर पसंद आयेगी | नीचे हमणे कूच कविता ये दी हे आप उन्हे पड सकते है| पेड हमरे बहुत अच्छे दोस्त होते है जो बिना किसी लालच के ऊनको हमे धन्यवाद करना चाहिये इसी लीये हम कूच कविताये लाये हे जो पेडोके महत्व को हमे समजाएगे |

पेड की पुकार

धरती की बस यही पुकार,
पेड़ लगाओ बारम्बार।

आओ मिलकर कसम खाएं,
अपनी धरती हरित बनाए।

धरती पर हरियाली हो,
जीवन में खुशहाली हो।

पेड़ धरती की शान है,
जीवन की मुस्कान है।

पेड़ पौधों को पानी दे,
जीवन की यही निशानी दे।

आओ पेड़ लगाए हम,
पेड़ लगाकर जग महकाकर।

जीवन सुखी बनाए हम,
आओ पेड़ लगाएं हम।

-लक्ष्मी

पेड़ का दर्द

कितने प्यार से किसी ने
बरसों पहले मुझे बोया था
हवा के मंद मंद झोंको ने
लोरी गाकर सुलाया था।

कितना विशाल घना वृक्ष
आज मैं हो गया हूँ
फल फूलो से लदा
पौधे से वृक्ष हो गया हूँ।

कभी कभी मन में
एकाएक विचार करता हूँ
आप सब मानवों से
एक सवाल करता हूँ।

दूसरे पेड़ों की भाँति
क्या मैं भी काटा जाऊँगा
अन्य वृक्षों की भाँति
क्या मैं भी वीरगति पाउँगा।

क्यों बेरहमी से मेरे सीने
पर कुल्हाड़ी चलाते हो
क्यों बर्बरता से सीने
को छलनी करते हो।

मैं तो तुम्हारा सुख
दुःख का साथी हूँ
मैं तो तुम्हारे लिए
साँसों की भाँति हूँ।

मैं तो तुम लोगों को
देता हीं देता हूँ
पर बदले में
कछ नहीं लेता हूँ।

प्राण वायु देकर तुम पर
कितना उपकार करता हूँ
फल-फूल देकर तुम्हें
भोजन देता हूँ।

दूषित हवा लेकर
स्वच्छ हवा देता हूँ
पर बदले में कुछ नहीं
तुम से लेता हूँ।

ना काटो मुझे
ना काटो मुझे
यही मेरा दर्द है।
यही मेरी गुहार है।
यही मेरी पुकार है।

अंजू गोयल

वृक्ष पर कविता 

प्रकृति की देन हैं वृक्ष 
ईश्वर का वरदान हैं वृक्ष 
इनसे पूर्ण जीवन होता हमारा 
इनसे है संसार हमारा 
हर किसी को समझनी होगी ये बात 
वृक्ष लगाने में देना होगा अपना साथ 
अगली पीढ़ी को क्या देकर जाओगे 
 सोचो एक बात यह भी ,यदि वृक्ष न लगाओगे 
साँस भी खुलकर न ले  पाएंगे 
अपना नही तो उनका सोचो
ये कदम उठाकर देखो
अपने आस -पास पेड़ लगाकर देखो
जीवन सुगम और स्वस्थ बनाओगे तुम
खुद भी स्वस्थ और खुश दूसरों
को भी स्वस्थ और सुखी बनाओगे तुम
प्रकृति की देन है वृक्ष ,ईश्वर का वरदान है वृक्ष !!

आओ मिलकर पेड़ लगाएं

आओ मिलकर पेड़ लगाएं
पृथ्वी को हरा-भरा बनाए 

पेड़ों के मीठे फल खाएं
फूलों की सुगंध फैलाएं 

पेड़ों से छाया हम पाएं
चारों ओर प्राणवायु फैलाएं 

मिट्टी को उपजाऊ बनाएं
भूजल स्तर को यह बढ़ाएं

बारिश का पानी ये ले आए
मिट्टी के कटाव को ये बचाएं 

पक्षी इनपर अपना नीड़ बनाए
प्रदूषण से ये हमें बचाएं

जब पेड़ों से लाभ इतना पाएं
तो मनुष्य अपने स्वार्थ के लिए

इन पेड़ों को क्यूं सताए
इनके संरक्षण की कसम हम खाएं 

आओ मिलकर पेड़ लगाएं
आओ मिलकर पेड़ लगाएं…

                                                                      _पूजा महावर 

Tree Poem in Hindi

गुलशन मरूस्थल हो चला,
है शुष्क ये सारा गगन
निश्चिन्त दोषन कर रहा
है मनुज अपने में मगन

ना आज की चिंता सताती
ना ही भविष्य का ज्ञान है
विज्ञान की डोरी पर दौड़े
फिर भी प्रकृति से अंजान है

प्रकृति के सब्र का बाँध भी
कब तक अडिग रह पाएगा
हे मूढ़ मानव कब तक तुम्हें
ये बूढ़ा तरूवर बचाएगा

है खड़े तन कर ये तरूवर
रोष दिनकर का संभाले
प्रोष में ये धरा है व्याकुल
हे मनुज तरूवर बचा लो.

अतुल कुमार सिंह

Save Tree Poetry in Hindi

कितने अच्छे पेड़ हमारे
घनी छांह हमको देते हैं
ऊँचे होते सुंदर लगते
हरा भरा मन कर देते हैं

शाख हिला कर हमें बुलाते
नित्य निमंत्रण देते रहते
चिड़ियाँ गाती फुदक-फुदक कर
उनको खेल खिलाते रहते

पहले फूल खिलाते जी भर
फल भी हमको दे देते
खट्टे मीठे और रसीले
सभी स्वाद के हैं वे होते

फल पक जाते ही झुक जाते
विनम्रता का पाठ पढ़ाते
वर्षा लाते ठीक समय पर
प्रयावरण पवित्र बनाते

इन्हें काटना नहीं कभी भी
ये तो सबके प्यारे हैं
झूलों की शोभा बन जाते
गीत सुनाने वाले हैं।

सरोजिनी कुलश्रेष्ठ

Tree Poem in Hindi

इधर कविताओं में कम पड़ते जा रहे है पेड़
कम होती जा रही पेडों पर लिखी कविताएँ

पेडों को दु:ख है कि
उस कवि ने भी कभी अपनी कविताओं में
उसका जिक्र नहीं किया
जो हर रोज़ उसकी छाया में बैठ
लिखता रहा देश-दुनिया पर अपनी कविताएँ

पेडों को दु:ख है कि
उस हाथ ने काटे उसके हाथ
जिस हाथ ने कभी कोई पेड़ नहीं लगाए
और मारे उसने उसके सिर पर पत्थर
जिसको अक़्सर अपनी बाँहों में झूलाता
देता रहा अपनी मिठास

दु:खी हैं पेड़ कि
उस हाथ ने किए उसके हाथ ज़ख़्मी
जिसके ज़ख़्मी हाथों पर मरहम का लेप बन
सोखता रहा वह उसकी पीड़ा

पेड़ दुखी है कि
उनका दु:ख कहीं दर्ज नहीं होता
और न ही अख़बारों में आदमी की तरह
छपती हैं उसकी हत्या की खबरें !

दु:खी है पेड़ कि
सब दिन सबका दु;ख बाँटने के बावजूद
आज उसका दु:ख कोई नहीं बाँटता !

यहाँ तक कि उसकी छाया में बैठकर
वर्षों पंचायती करने वालों ने भी
कभी उनकी पंचायती नहीं की !

अशोक सिंह

Ped Par Kavita

एक ऐसे समय में
जब पेड़ आदमी नहीं हो सकते
और न ही आदमी पेड़

पेड़ आदमी से पूछना चाहते हैं
विनम्रता से एक बात कि —
अगर उसकी जगह आदमी होता
और आदमी की जगह वह
तो आज उस पर क्या बीत रही होती ?

कहो न ! चुप क्यों हो ?
क्या बीत रही होती तुम पर
अगर आदमी के बजाय तुम पेड़ होते ?

अशोक सिंह

सच्चा अनुभव

ये जो कविता है वो सच्चे अनुभव के आधार पर लिखी है ।

तो इसके ऊपर आपके जो कॉमेंट्स है वो अवश्य लिखें ।

तो चलिए, हम आज के कविता का पाठ शुरू करते है ।

सच्चा अनुभव

सच्चा अनुभव कहते हैं,

वृक्ष देवता होते है ।

बचपन से जिन्हें देखा हमने,

जिनकी गोद में खेला हमने ।

घनी छाँव में बैठे हम,

दिल का सुकून पाए हम।

ऐसे वृक्ष महान होते है,

हर धर्म में गुणगान होते है ।

वृक्ष देवता होते है,

सच्चा अनुभव कहते है ।

आस्तिक हो या नास्तिक हो,

सबको देते समसमान ।

आस्तिक हो या नास्तिक हो, सबको देते समसमान ।

गिरते हुए भी ये वृक्ष,

बहुत कुछ दे जाते है ।

कभी फल, कभी फूल,

कभी पत्ते, कभी खुशबू ।

कहीं लकडी, तो कहीं यादें,

कितनी सारी अनगिनत,

कुछ सुनी, कुछ अनसुनी ।

कितने घौंसले, कितने घरौंदे,

वृक्ष बना देते हैं ।

हर जीव की सेवा में,

जी जान लुटा देते है ।

फल की उत्पत्ति होती है,

तो ब्रह्मा जी दिखते है ।

प्राणवायु प्रदान करते,

भगवान विष्णु दिखते है ।

कार्बन वायु का जहर पिते,

महादेव का स्मरण कराते ।

इसलिए वृक्ष भगवान होते है,

सच्चा अनुभव हम कहते हैं ।

श्रेष्ठ कर्म है वृक्ष लगाना,

सेवा में वृक्ष धर्म निभाना ।

ऐसे वृक्ष से जब मिलता हूँ,

कुछ वो कहता है, कुछ मैं कहता हूँ ।

अमेरिका में एक जगह,

एक वृक्ष शान से खड़ा था ।

हमनें Hi Hello किया,

तो वो भी थोडा हँस दिया ।

हमने कहा फोटो खिचना है,

उसने कहा ये क्या पुछना है ?

सुंदर फोटो खिच लिया,

फिर उसे bye bye किया ।

घर आए तो देखा फोटो,

बहुत अच्छा निकला था ।

फोटो में सूरज तेजःपुंज,

लेकिन एक बैंगनी प्रकाशपुंज ।

देखकर हम अचंभित थे,

पेड़ पर तो ये नहीं थे ।

देखकर हम अचंभित थे,

पेड़ पर तो ये नहीं थे ।

कहाँ से आया प्रकाशपुंज था ?

कडी धूप में चमक रहा था ।

मानो उसकी अपनी ऊर्जा हो,

अपना ही दिव्य तेज हो ।

एक अचंभा और हुआ,

जब हमने zoom किया ।

प्रकाशपुंज से एक चेहरा,

मानो हमें देख रहा था ।

प्रकाशपुंज से एक चेहरा,

मानो हमें देख रहा था ।

स्थिति सोच के बाहर थी,

अघटित घटना हुई थी ।

विज्ञान जहा खतम होता है,

अध्यात्म वहा शुरू होता है ।

सच्चा अनुभव कहता हूँ,

आराध्य वृक्ष दिखाता हूँ ।

अंधविश्वास नहीं फैलाना,

सत्य की खोज में है चलना ।

फोटो देखो दिल से सोचो,

किसका चेहरा जरूर बताओ ।

तब तक हम जयकार करते है,

निसर्गदत्त को प्रणाम करते है ।

आपको प्रणाम करते है ।

धन्यवाद ।

कितने प्यार से किसी ने, बरसों पहले मुझे बोया था
हवा के मंद मंद झोंको  ने, मुझे प्यार से संजोया था ।

कितना बड़ा घना वृक्ष, आज  मैं  हो  गया  हूँ
फल फूलो से लदा, पौधे से वृक्ष हो गया हूँ  ।

कभी कभी मन में, एकाएक विचार करता हूँ I
आप सब मानवों से, मैं एक सवाल करता हूँ ।

दूसरे पेड़ों की भाँति, क्या मैं भी काटा जाऊँगा ?
दूसरे वृक्षों की भाँति, क्या मैं वीरगति को पाउँगा ।

क्यों बेरहमी से मेरे सीने पर कुल्हाड़ी चलाते हो I
क्यों बेरहमी से मेरे सीने को छलनी कर जाते हो ।

मैं तो तुम्हारा सुख-दुःख का साथी हूँ
मैं तो तुम्हारे लिए साँसों की भाँति हूँ।

मैं तो तुम लोगों को, देता हीं देता हूँ
पर बदले में, कछ नहीं लेता हूँ  ।

प्राण वायु  देकर तुम पर,
कितना उपकार करता हूँ

फल-फूल देकर तुम्हें भोजन देता हूँ,
दूषित हवा लेकर स्वच्छ हवा देता हूँ

ना काटो मुझे, ना काटो मुझे
यही मेरा दर्द है।

यही मेरी गुहार है।
यही मेरी पुकार  है।

अगर आपको ये कविताये पसंद आती हे तो हमे जरूर कमेन्ट के माध्यम से बताये अगर आपकी कोई query हे तो भी आप हमे बता सकते है और अगर आप इस कविता के असली लेखक है और आप इस कविता को हटवाणा चाहते है तो हमे कमेन्ट मे या हमे ईमेल भी कर सकते है |

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