धरती की बस यही पुकार,
पेड़ लगाओ बारम्बार।
आओ मिलकर कसम खाएं,
अपनी धरती हरित बनाए।
धरती पर हरियाली हो,
जीवन में खुशहाली हो।
पेड़ धरती की शान है,
जीवन की मुस्कान है।
पेड़ पौधों को पानी दे,
जीवन की यही निशानी दे।
आओ पेड़ लगाए हम,
पेड़ लगाकर जग महकाकर।
जीवन सुखी बनाए हम,
आओ पेड़ लगाएं हम।
-लक्ष्मी
कितने प्यार से किसी ने
बरसों पहले मुझे बोया था
हवा के मंद मंद झोंको ने
लोरी गाकर सुलाया था।
कितना विशाल घना वृक्ष
आज मैं हो गया हूँ
फल फूलो से लदा
पौधे से वृक्ष हो गया हूँ।
कभी कभी मन में
एकाएक विचार करता हूँ
आप सब मानवों से
एक सवाल करता हूँ।
दूसरे पेड़ों की भाँति
क्या मैं भी काटा जाऊँगा
अन्य वृक्षों की भाँति
क्या मैं भी वीरगति पाउँगा।
क्यों बेरहमी से मेरे सीने
पर कुल्हाड़ी चलाते हो
क्यों बर्बरता से सीने
को छलनी करते हो।
मैं तो तुम्हारा सुख
दुःख का साथी हूँ
मैं तो तुम्हारे लिए
साँसों की भाँति हूँ।
मैं तो तुम लोगों को
देता हीं देता हूँ
पर बदले में
कछ नहीं लेता हूँ।
प्राण वायु देकर तुम पर
कितना उपकार करता हूँ
फल-फूल देकर तुम्हें
भोजन देता हूँ।
दूषित हवा लेकर
स्वच्छ हवा देता हूँ
पर बदले में कुछ नहीं
तुम से लेता हूँ।
ना काटो मुझे
ना काटो मुझे
यही मेरा दर्द है।
यही मेरी गुहार है।
यही मेरी पुकार है।
– अंजू गोयल
प्रकृति की देन हैं वृक्ष
ईश्वर का वरदान हैं वृक्ष
इनसे पूर्ण जीवन होता हमारा
इनसे है संसार हमारा
हर किसी को समझनी होगी ये बात
वृक्ष लगाने में देना होगा अपना साथ
अगली पीढ़ी को क्या देकर जाओगे
सोचो एक बात यह भी ,यदि वृक्ष न लगाओगे
साँस भी खुलकर न ले पाएंगे
अपना नही तो उनका सोचो
ये कदम उठाकर देखो
अपने आस -पास पेड़ लगाकर देखो
जीवन सुगम और स्वस्थ बनाओगे तुम
खुद भी स्वस्थ और खुश दूसरों
को भी स्वस्थ और सुखी बनाओगे तुम
प्रकृति की देन है वृक्ष ,ईश्वर का वरदान है वृक्ष !!
आओ मिलकर पेड़ लगाएं
पृथ्वी को हरा-भरा बनाए
पेड़ों के मीठे फल खाएं
फूलों की सुगंध फैलाएं
पेड़ों से छाया हम पाएं
चारों ओर प्राणवायु फैलाएं
मिट्टी को उपजाऊ बनाएं
भूजल स्तर को यह बढ़ाएं
बारिश का पानी ये ले आए
मिट्टी के कटाव को ये बचाएं
पक्षी इनपर अपना नीड़ बनाए
प्रदूषण से ये हमें बचाएं
जब पेड़ों से लाभ इतना पाएं
तो मनुष्य अपने स्वार्थ के लिए
इन पेड़ों को क्यूं सताए
इनके संरक्षण की कसम हम खाएं
आओ मिलकर पेड़ लगाएं
आओ मिलकर पेड़ लगाएं…
_पूजा महावर
गुलशन मरूस्थल हो चला,
है शुष्क ये सारा गगन
निश्चिन्त दोषन कर रहा
है मनुज अपने में मगन
ना आज की चिंता सताती
ना ही भविष्य का ज्ञान है
विज्ञान की डोरी पर दौड़े
फिर भी प्रकृति से अंजान है
प्रकृति के सब्र का बाँध भी
कब तक अडिग रह पाएगा
हे मूढ़ मानव कब तक तुम्हें
ये बूढ़ा तरूवर बचाएगा
है खड़े तन कर ये तरूवर
रोष दिनकर का संभाले
प्रोष में ये धरा है व्याकुल
हे मनुज तरूवर बचा लो.
–अतुल कुमार सिंह
कितने अच्छे पेड़ हमारे
घनी छांह हमको देते हैं
ऊँचे होते सुंदर लगते
हरा भरा मन कर देते हैं
शाख हिला कर हमें बुलाते
नित्य निमंत्रण देते रहते
चिड़ियाँ गाती फुदक-फुदक कर
उनको खेल खिलाते रहते
पहले फूल खिलाते जी भर
फल भी हमको दे देते
खट्टे मीठे और रसीले
सभी स्वाद के हैं वे होते
फल पक जाते ही झुक जाते
विनम्रता का पाठ पढ़ाते
वर्षा लाते ठीक समय पर
प्रयावरण पवित्र बनाते
इन्हें काटना नहीं कभी भी
ये तो सबके प्यारे हैं
झूलों की शोभा बन जाते
गीत सुनाने वाले हैं।
–सरोजिनी कुलश्रेष्ठ
इधर कविताओं में कम पड़ते जा रहे है पेड़
कम होती जा रही पेडों पर लिखी कविताएँ
पेडों को दु:ख है कि
उस कवि ने भी कभी अपनी कविताओं में
उसका जिक्र नहीं किया
जो हर रोज़ उसकी छाया में बैठ
लिखता रहा देश-दुनिया पर अपनी कविताएँ
पेडों को दु:ख है कि
उस हाथ ने काटे उसके हाथ
जिस हाथ ने कभी कोई पेड़ नहीं लगाए
और मारे उसने उसके सिर पर पत्थर
जिसको अक़्सर अपनी बाँहों में झूलाता
देता रहा अपनी मिठास
दु:खी हैं पेड़ कि
उस हाथ ने किए उसके हाथ ज़ख़्मी
जिसके ज़ख़्मी हाथों पर मरहम का लेप बन
सोखता रहा वह उसकी पीड़ा
पेड़ दुखी है कि
उनका दु:ख कहीं दर्ज नहीं होता
और न ही अख़बारों में आदमी की तरह
छपती हैं उसकी हत्या की खबरें !
दु:खी है पेड़ कि
सब दिन सबका दु;ख बाँटने के बावजूद
आज उसका दु:ख कोई नहीं बाँटता !
यहाँ तक कि उसकी छाया में बैठकर
वर्षों पंचायती करने वालों ने भी
कभी उनकी पंचायती नहीं की !
–अशोक सिंह
एक ऐसे समय में
जब पेड़ आदमी नहीं हो सकते
और न ही आदमी पेड़
पेड़ आदमी से पूछना चाहते हैं
विनम्रता से एक बात कि —
अगर उसकी जगह आदमी होता
और आदमी की जगह वह
तो आज उस पर क्या बीत रही होती ?
कहो न ! चुप क्यों हो ?
क्या बीत रही होती तुम पर
अगर आदमी के बजाय तुम पेड़ होते ?
–अशोक सिंह
ये जो कविता है वो सच्चे अनुभव के आधार पर लिखी है ।
तो इसके ऊपर आपके जो कॉमेंट्स है वो अवश्य लिखें ।
तो चलिए, हम आज के कविता का पाठ शुरू करते है ।
सच्चा अनुभव
सच्चा अनुभव कहते हैं,
वृक्ष देवता होते है ।
बचपन से जिन्हें देखा हमने,
जिनकी गोद में खेला हमने ।
घनी छाँव में बैठे हम,
दिल का सुकून पाए हम।
ऐसे वृक्ष महान होते है,
हर धर्म में गुणगान होते है ।
वृक्ष देवता होते है,
सच्चा अनुभव कहते है ।
आस्तिक हो या नास्तिक हो,
सबको देते समसमान ।
आस्तिक हो या नास्तिक हो, सबको देते समसमान ।
गिरते हुए भी ये वृक्ष,
बहुत कुछ दे जाते है ।
कभी फल, कभी फूल,
कभी पत्ते, कभी खुशबू ।
कहीं लकडी, तो कहीं यादें,
कितनी सारी अनगिनत,
कुछ सुनी, कुछ अनसुनी ।
कितने घौंसले, कितने घरौंदे,
वृक्ष बना देते हैं ।
हर जीव की सेवा में,
जी जान लुटा देते है ।
फल की उत्पत्ति होती है,
तो ब्रह्मा जी दिखते है ।
प्राणवायु प्रदान करते,
भगवान विष्णु दिखते है ।
कार्बन वायु का जहर पिते,
महादेव का स्मरण कराते ।
इसलिए वृक्ष भगवान होते है,
सच्चा अनुभव हम कहते हैं ।
श्रेष्ठ कर्म है वृक्ष लगाना,
सेवा में वृक्ष धर्म निभाना ।
ऐसे वृक्ष से जब मिलता हूँ,
कुछ वो कहता है, कुछ मैं कहता हूँ ।
अमेरिका में एक जगह,
एक वृक्ष शान से खड़ा था ।
हमनें Hi Hello किया,
तो वो भी थोडा हँस दिया ।
हमने कहा फोटो खिचना है,
उसने कहा ये क्या पुछना है ?
सुंदर फोटो खिच लिया,
फिर उसे bye bye किया ।
घर आए तो देखा फोटो,
बहुत अच्छा निकला था ।
फोटो में सूरज तेजःपुंज,
लेकिन एक बैंगनी प्रकाशपुंज ।
देखकर हम अचंभित थे,
पेड़ पर तो ये नहीं थे ।
देखकर हम अचंभित थे,
पेड़ पर तो ये नहीं थे ।
कहाँ से आया प्रकाशपुंज था ?
कडी धूप में चमक रहा था ।
मानो उसकी अपनी ऊर्जा हो,
अपना ही दिव्य तेज हो ।
एक अचंभा और हुआ,
जब हमने zoom किया ।
प्रकाशपुंज से एक चेहरा,
मानो हमें देख रहा था ।
प्रकाशपुंज से एक चेहरा,
मानो हमें देख रहा था ।
स्थिति सोच के बाहर थी,
अघटित घटना हुई थी ।
विज्ञान जहा खतम होता है,
अध्यात्म वहा शुरू होता है ।
सच्चा अनुभव कहता हूँ,
आराध्य वृक्ष दिखाता हूँ ।
अंधविश्वास नहीं फैलाना,
सत्य की खोज में है चलना ।
फोटो देखो दिल से सोचो,
किसका चेहरा जरूर बताओ ।
तब तक हम जयकार करते है,
निसर्गदत्त को प्रणाम करते है ।
आपको प्रणाम करते है ।
धन्यवाद ।
कितने प्यार से किसी ने, बरसों पहले मुझे बोया था
हवा के मंद मंद झोंको ने, मुझे प्यार से संजोया था ।
कितना बड़ा घना वृक्ष, आज मैं हो गया हूँ
फल फूलो से लदा, पौधे से वृक्ष हो गया हूँ ।
कभी कभी मन में, एकाएक विचार करता हूँ I
आप सब मानवों से, मैं एक सवाल करता हूँ ।
दूसरे पेड़ों की भाँति, क्या मैं भी काटा जाऊँगा ?
दूसरे वृक्षों की भाँति, क्या मैं वीरगति को पाउँगा ।
क्यों बेरहमी से मेरे सीने पर कुल्हाड़ी चलाते हो I
क्यों बेरहमी से मेरे सीने को छलनी कर जाते हो ।
मैं तो तुम्हारा सुख-दुःख का साथी हूँ
मैं तो तुम्हारे लिए साँसों की भाँति हूँ।
मैं तो तुम लोगों को, देता हीं देता हूँ
पर बदले में, कछ नहीं लेता हूँ ।
प्राण वायु देकर तुम पर,
कितना उपकार करता हूँ
फल-फूल देकर तुम्हें भोजन देता हूँ,
दूषित हवा लेकर स्वच्छ हवा देता हूँ
ना काटो मुझे, ना काटो मुझे
यही मेरा दर्द है।
यही मेरी गुहार है।
यही मेरी पुकार है।
अगर आपको ये कविताये पसंद आती हे तो हमे जरूर कमेन्ट के माध्यम से बताये अगर आपकी कोई query हे तो भी आप हमे बता सकते है और अगर आप इस कविता के असली लेखक है और आप इस कविता को हटवाणा चाहते है तो हमे कमेन्ट मे या हमे ईमेल भी कर सकते है |
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Mahi
तेरे बल्लेसे निकला हर गेंद आसमान छूता था,
तेरे मैदान पर आने से हमे पुरा हिंदुस्थान याद आता था
हमने तो देखे हैं बहोत खिलाड़ी
लेकिन सच कहता हू माही, तेरे जैसा कोई न था ।
क्यो हो गये माही अपने खेलसे retire
तुम्हारे सामने तो झुके थे कई umpire.
हमने तो तेरी untold story को भी कियाथा hit
क्यो की तू आदमी ही हैं सारे जहाँ को superhit
भलेही छोड़ा हैं तुमनें खेलना
लेकिन हम नही छोडेंगे तुम्हे देखना
फिर तुम मैदान की जगह सरहदपर क्यो ना होना
MISS U MAHI ON GROUND
–Prasad Raj Kendre.
धोनी
नाम हैं उसका.. माही मचाता हैं.. तबाही
लंबे लंबे बाल लेके.. टीम में वो आया था
धीरे धीरे दिल में.. सबके वो समाया था
हारते हुए मैच में.. वो जीत दिलाता था
तभी से लोगों ने.. उसे फिनिशर बनाया था
शॉर्ट उसका हेलीकॉप्टर.. जब आसमां में जाता था
सामने उसके बॉलर भी.. डर से कापता था
मुश्किल भरे मैच में .. जो आपा कभी ना खोता था
उसके इसी अंदाज़ से.. वो कैप्टन कूल कहलाता था
नाम हैं उसका.. माही मचाता हैं.. तबाही
-vishayar
माही
माही की क्या बात करूँ में, माही तो अलबेला है।
ऐसा कौन सा खेल है भाई, जो माही ने नहीं खेला है।
बुलंदियों को छूने से पहले, कितने दुखों को झेला हैं।
तीनो / trophy दिलाने वाला, ये captain cool अकेला हैं।
नमस्कार मित्रांनो आता आपण पाहू माही बद्दल मराठी कविता, मला खात्री आहे की ही कविता तुम्हाला नक्की आवडेल जर ही कविता तुम्हाला आवडली तर आम्हाला नक्की कळवा आणि जर तुम्ही तुमची कविता आम्हाला पाठवू इच्छित असाल तर आम्हाला ती कविता कमेन्ट मधून पाठऊ शकता. चला आता कविता पाहू…
धोनी
कोण म्हणतंय संपला आहेस तू
उधाणलेल्या समुद्रातील भरकटलेल्या जहाजाला
किनाऱ्यावर पोहचविणारा ‘तारण कर्ता’ आहेस तू
यष्टीमागे विद्यूलतेसारखी सावजावर झडप घालणारा
‘ढाण्या वाघ’ आहेस तू
वेळ पडली तर जिंकण्यासाठी चक्रव्यूह
रचणारा ‘गुरु द्रोण’ आहेस तू
अजूनही बोथट झाली नाही धार तुझ्या तलवारीची
‘फिनीशरचा’ चाबूक फिरवून तोंडे बंद केली टीकाकारांची तू
विझला नाही श्रेष्ठत्वाचा अंगार अजूनही
चीन खेळाडूंची पोलादी छाती बनविणारा ‘शिल्पकार’ आहेस तू
२०१९ चा वर्ल्डकप हातात पकडण्याची स्वप्न बघणाऱ्या
लाखों भारतीयांचा ‘श्वास’ आहेस तू
आणि अजून एक बरं का
क्रिकेटच्या मैदानावरील युद्धात
अर्जुन विराटचा श्रीकृष्ण ‘सारथी’ असत
–प्रियांका भगत
]]>आसान नहीं है जिंदगी जीना, बहुतसी ठोकरे खानी पड़ती है।
और ठोकरे ना खानी पड़े,
तो वो जिंदगी कैसे होगी भला। बहुतसी इच्छाएं यहा,
दिल में ही दफ़नानी पड़ती है।
ख़ुद से रूकना हमेशा मना होता है, इसलिए चलना ही पड़ता है।
आसपास सब होता है,
फिर भी अकेलापन ख़लता है।
आसान नहीं है ज़िंदगी जीना…
जिन्दगी इतनी आसान नही कभी इसे जान कर तो देखो,
एक हंसते हुए चेहरे के पीछे का दर्द कभी पहचान कर तो देखो…
यूं ही नही लोग हंसी से अपना गम छुपाते है जब कोई न हो
गम बाटने वाला तो ,वो झूठ की मुस्कान सीख ही जाते है|
जिन्दगी इतनी आसान नही कभी इसे जानकर तो देखो…
यूं ही नही हम डूब जाते है खामोशियो मे …
कभी इन खामोशियो का दर्द जानकर तो देखो,
यूं ही नही लोग तन्हाईयो को अपना साथी बनाते है…
जब कोई न हो समझने और सुनने वाला तो वो तन्हाईयो मे डूब ही जाते है|
जिन्दगी इतनी आसान नही कभी इसे जानकर तो देखो,
कभी किसी के आंखो की नमी को पहचान कर तो देखो,
कभी किसी के खामोशियो को महसूस कर के तो देखो,
बहुत से रंग है इस जिन्दगी के कभी इन्हे पहचान कर तो देखो|
जिन्दगी इतनी आसान नही कभी इसे जानकर तो देखो…
पर जिन्दगी आसान हो जायेगी….
कभी किसी के आंसुओ को पोछकर तो देखो,
कभी अपने गमो को भूलकर किसी को खुशिया देकर तो देखो,
कभी किसी की खमोशियो को गुनगुना कर तो देखो,
जिन्दगी आसान हो जायेगी कभी इसे बदलकर तो देखो …
जो चाहोगे वो मिल जायेगा कभी कुछ करने की ठान कर तो देखो…
मिलेगी सच्ची खुशिया तुम्हे भी कभी बिना स्वार्थ किसी को कुछ देकर तो देखो…
जिन्दगी संवर जायेगी, सुधर जायेगी, बदल जायेगी ,
कभी किसी को दिल से अपना मानकर तो देखो|
जिन्दगी आसान हो जायेगी कभी इसे बदलकर तो देखो|
सौम्या श्रीवास्तव
इलाहाबाद